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Saturday, May 8, 2010

मै खुद को फरिश्ता नही कहता

दरिया तो है वो, जिस से किनारे छलक उठाये
बहते हुए पानी को मै दरिया नही कहता
गहराई जो दी तुने मेरे ज़ख्म ए जिगर को
मै इतना समुंद्र को भी गहरा नही कहता
किस किस की तम्मना मे करू प्यार को तक़सीम
हर शक़स को मै जान ए तम्मना नही कहता
करता हूँ मै, अपने गुनाहो पे बहुत नाज़
इंसान हूँ मै खुद को फरिश्ता नही कहता

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